कोई न करे प्रीत – Poet Unknown.
रमईया मेरे तोही सूं लागी नेह।
लागी प्रीत जिन तोडै रे बाला, अधिकौ कीजै नेह।
जै हूं ऐसी जानती रे बाला, प्रीत कीयां दुष होय।
नगर ढंढोरो फेरती रे, प्रीत करो करो मत कोय।
षीर न षाजे आरी रे, मूरष न कीजै मिन्त।
षिण ताता षिण सीतला रे, षिण बैरी षिण मिन्त।
प्रीत करै ते बाबरा रे, करि तोडै ते क्रूर।
प्रीत निभावण दल के षभण, ते कोई बिरला सूर।
तम गजगीरी कौं चूंतरौरे, हम बालु की भीत।
अब तो म्यां कैसे बणै रे, पूरब जनम की प्रीत।
एकै थाणो रोपिया रे, इक आंबो इक बूल।
बाकौ रस नीकौ लगै रे, बाकी भागै सूल।
ज्यूं डूगर का बाहला रे, यूं ओछा तणा सनेह।
बहता बेता उतावला रे, वहैजी वे तो लटक बतावे छेह।
आयो सांवण भादवा रे, बोलण लागा मोर।
मीरा कूं हरिजन मिल्या रे, ले गया पवन झकोर॥
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अम्बर ते अत्ति ऊँची वहे अरु नीची रसातल हु ते अथारि,
तुहिन के गिरसे अति शीतल पावक से अति जारन हारी.
मारहु ते कटु मीठी सुधाहुते जिनी अणुते सुमेरु ते भारी,
जानत जान अजान न मानत सागर बात सनेह की न्यारी
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Dhavalrajgeera
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વાહ! ગંભીર થવાની તાલીમ મળી ગઈ !
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